Wednesday, 16 March 2016

Life Dard Friendship Dosti Hindi Shayari

Hindi Shayari on life Dard Love friendship dosti sad

Hindi Shayari on life Dard Love friendship dosti sad : शिकायत करने से खामोश रहना बेहतर है, क्यूंकि जब किसी को फर्क नही पड़ता तो शिकायत कैसी ??? ☹☹😷 सही कहा ना दोस्तों  

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मुझे रिश्तो की लंबी कतारोँ से मतलब नही,
कोई दिल से हो मेरा, तो एक शख्स ही काफी है

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तन्हाई अकेलेपन की मोहताज़ नहीं होती,
भीड़ ज़्यादा हो तो अपना वजूद तन्हा लगने लगता है.

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कितनी भी शिद्दत से क्यूँ ना निभाओ रिश्ता,
बदलने वाले फिर भी बदल ही जाते है !!

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अपनी तक़दीर में तो कुछ ऐसा ही सिलसिला लिखा है,
किसी ने वक़्त गुजारने के लिए अपना बनाया,
तो किसी ने अपना बना कर वक़्त गुज़ार लिया……..

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मैं अभी तक समझ नहीं पाया तेरे इन फैसलो को ऐ खुदा,
उसके हक़दार हम नहीं या हमारी दुआओ में दम नहीं

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मोहब्बत भी चाहते हो और मुक्म्म्ल वफ़ा भी,,
आप तो धुंए के बादलों से बरसात माँग रहे हो...!!!

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समुंद्र की तरफ जाना हो तो जरा सब्र रख कर जाना...
जहाज बताते है कि "समुंद्र "मे छुपने के ठिकाने नही होते 

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तन्हाईयाँ कुछ इस तरह से डसने लगी हैँ मुझे..
मै आज अपने पाँवो की आहट से ही डर गया..

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बिछड़ने वाले तेरे लिए एक "मशवरा" है ,...
कभी हमारा "ख्याल" आए, तो अपना 'ख्याल' रखना....

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अपना होगा तो सता के मरहम देगा,
जालिम होगा अपना बना के जख्म देगा,
समय से पहले पकती नहीं फसल,
अरे बहुत बरबादियां अभी मौसम देगा|

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छोङ दिया सबको बिना वजह तंग करना…,
जब कोई अपना समझता ही नही…,
तो उसे अपनी याद क्या दिलाना

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शिकायत करने से खामोश रहना बेहतर है, 
क्यूंकि 
जब किसी को फर्क नही पड़ता तो शिकायत कैसी ??? ☹☹😷
      सही कहा ना दोस्तों...

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मुहब्बत हर दिल को आजमाती है.....
किसी से रूठ जाती है.....
और किसी पर मुस्कुराती है.....
ये खेल ही ऐसा है मुहब्बत का.....
किसी का कुछ नहीं लेती.....
और किसी का सब कुछ ले जाती है.....

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सुना  है होली आ रही ऐ दिल सम्हल कें रहना ...
क्यूंकि लोग गालो पे रंग लगाकर दिल का रंग चुरा लेते है...

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यूँ तो कहने को बहुत सी बातें हैं इस दिल में ...........! 
कुछ लफ़्जों में कह दूँ....
मेरी आखिरी ख्वाहिश हो तुम

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बस दो अदायें उन की बेताब कर गयी...
अंदाज नज़रे मिलाने का और नज़रअंदाज़ करने का

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मुझे मंज़ूर थे वक़्त के हर सितम मगर ,
तुमसे बिछड़ जाना, ये सज़ा कुछ
ज्यादा हो गई...

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फकीर मिज़ाज़ हूँ मैं, अपना अंदाज औरों से जुदा रखता हूँ..
लोग मंदिर मस्जिदों में जाते है, मैं अपने दिल में भगवान को रखता हूँ..

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रंगों का कारोबार हमने खूब किया
पर कभी मोहब्बत का रंग न बेच पाये ..

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जाने क्यूँ महसूस हो रहा है.!!
मुझ़े महसूस कर रहे हो तुम

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तेरी नजरों का नजारा जो देखा एक नजर 
दिल हुआ आवारा नहीं भूलता अब वो मंजर

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है दफ़न मुझमे कितनी रौनके मत पूछ,
ऐ दोस्त…..
हर बार उजड़ के भी बसता रहा वो शहर हूँ मैं!!

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इन नजरों को सलाम भेजा है 
यूं ना समझना किसी को कलाम भेजा है

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ये रस्म,
ये रिवाज,
ये कारोबार वफ़ाओं का
सब छोड़ आना तुम...!!
मेरे बिखरने से जरा  पहले
लौट आना तुम ...!!!

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देख के ह़या से सिमटना तेरा 
ना जाने कितनी बार बिखरा हूं मैं

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मिली जब जब तुझसे ये नजर 👀
हर बार तब तब निखरा हूं मैं

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नसीब की बारिश ,,
कुछ इस तरह से होती रही मुझ पर ,,
ख्वाहिशें सूखती रही और 
पलकें भीगती रही !!

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हस्तियाँ मिट गयी नाम कमाने में, उम्र बीत गयी खुशियाँ पाने में, एक पल में दूर ना हो जाना हमसे, हमें तो सालों लगे है, आप जैसा दोस्त पाने में ..

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देख के ह़या से सिमटना तेरा 
ना जाने कितनी बार बिखरा हूं मैं 🌺
🌺मिली जब जब तुझसे ये नजर 👀
हर बार तब तब निखरा हूं मैं 🌺
🌺तेरा सिमटना, मेरा बिखरना, नजरों में तेरी निखरना मेरा
ना जाने कितनी नजरों में अखरा हूं मैं 

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मुतमा-इन ज़िन्दगी से, कुछ ऐसे हुए जाते हैं
क़िस्मत के फटे चीथड़े, बेबस हो सीये जाते हैं

तेरा वजूद होगा, मेरे लिए भी लाज़िम 
नामालूम सी ज़िन्दगी से, तन्हाई पिए जाते हैं

बर्क-ए-नज़र कितनी, गिरतीं रहीं हैं सर पर
बेअसर सर को अब तो, बा-असर किये जाते हैं

इक आरज़ू तो है ही, इक बहार खुल के आये  
इस एक ऐतमाद पर, हम गुज़र किये जाते हैं

ग़र दुआ भी देंगे तुमको, तो कितनी दुआयें देंगे
साँसों के साथ उम्र भी, अब नज़र किये जाते हैं 

हम वो नदी हैं जिसके, किनारे ग़ुमगश्ता हो गए 
उन किनारों की ख़ोज में हम लहर लिए जाते हैं 

हमको क्या पड़ी 'अदा', बहारें आये-जाएँ
मौसम-ए-रूह की हम, बस क़दर किये जाते हैं 
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

मुतमा-इन = संतुष्ट 
बर्क़-ए-नज़र = नज़रों की बिजलियाँ  
ऐतमाद = विश्वास 
लाज़िम = महत्वपूर्ण, आवश्यक 
ग़ुमगश्ता=खोया हुआ 

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ये रोज़-रोज़ की प्रार्थना
हर रविवार का सत्संग 
और हर दिन तम्बाखू खाना  
आदत में ही शुमार हैं 
एक रह जाए तो मन को कष्ट होता है
और दूसरे से तन को  । 
आदत कैसी भी हो 
आदत ही होती है
अगर शान्ति चाहिए तो 
आदत से बाहर निकल कर 
कुछ सृजन करो 
शब्द अपने में कुछ नहीं होते 
उनको जीवित तुम करते हो 
अगर ऐसा नहीं होता तो 
'मरा' 'मरा' कहने वाला 
भक्त क्यूँ कहाता  ?
भगवान् भी तभी तक है 
जब तक भक्त रहता है 
और 
गंगा भी तभी तक गंगा है 
जब तक वो सागर में नहीं समाती .....

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तेरा जमाल मुझे क्यूँ, हर सू नज़र आए
इन बंद आँखों में भी, बस तू नज़र आए
सजदा करूँ मैं तेरी, कलम को बार-बार
हर हर्फ़ से लिपटी मेरी, आरज़ू नज़र आए
गुज़र रही हूँ देखो, इक ऐसी कैफ़ियत से
ख़ामोशियों का मौसम, गुफ़्तगू नज़र आए
फासलों में क़ैद हो गए, ये दो बदन हमारे 
पर उफ़क से ये ज़मीं क्यूँ, रूबरू नज़र आए
वो संदल सा गमके और कुंदन सा दमके 
उसकी बेक़रार सी आँखें, क्यूँ पुर-सुकूँ नज़र आये 

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